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________________ ४३. (पुरोहित की जिज्ञासा-) “हे भिक्षु! तुम्हारी (दृष्टि में) ज्योति (अग्नि) कौन-सी (आहुति-योग्य) है? कौन-सा ज्योति-स्थान (यज्ञ-कुण्ड) है? (घृतादि में डालने वाली कड़छी कौन-सी (प्रयुक्त) होती है? (अग्नि जलाने के लिए प्रयुक्त) कण्डे कौन-से हैं? तुम्हारे ईन्धन कौन-से हैं? शान्तिपाठ कौन-सा है? और किस प्रकार की होम-विधि द्वारा आप ज्योति (अग्नि) में हवन करते हैं?'' ४४. (मुनि का समाधान-) “तप ही ज्योति (अग्नि) है, जीव (आत्मा ही) ज्योति-स्थान (यज्ञ-कुण्ड) है, 'योग' (मन-वचन-काय की शुभ प्रवृत्तियां) कड़छियां हैं, शरीर कण्डे हैं, कर्म (ही) ईन्धन है, संयम-पूर्ण प्रवृत्ति शान्ति-पाठ है। मैं तो ऋषियों के लिए प्रशस्त (इसी अहिंसक) होम (यज्ञ) को किया करता हूँ।" ४५. (पुरोहित की पुनः जिज्ञासा-) “आपका ह्रद (जलाशय) कौन-सा है, कौन-सा शान्ति-तीर्थ है? किसमें आप नहा कर रज (मैल) को धोते हैं? हे यक्ष-पूजित संयमी! हम आपके सान्निध्य में जानना चाहते हैं, आप हमें बताएं।” ४६. (मुनि द्वारा समाधान-) “इह-परलोक-हितकारी प्रशस्त आत्मिक लेश्या से युक्त तथा (मिथ्यात्वादि के अभाव से) अकलुषित (स्वच्छ/निर्मल) धर्म ही मेरा ह्रद है, ब्रह्मचर्य (की साधना ही, या वैसी साधना करने वाले साधु ही) शान्ति-तीर्थ हैं, जहां स्नान कर, मैं निर्मल, शुद्ध व सुशीतल होकर, दोष (रूपी मैल) को दूर किया करता हूँ।” ४७. इस (पूर्वोक्त) स्नान को कुशल (तत्वज्ञानी) पुरुषों ने देखा-साक्षात्कार किया है, (यही) ऋषियों के लिए प्रशस्त 'महास्नान' है, जिसमें स्नान कर महर्षि निर्मल व विशुद्ध होते हुए, उत्तम स्थान (मोक्ष) को प्राप्त होते रहे हैं। -ऐसा मैं कहता हूँ। . अध्ययन-१२ २११
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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