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________________ अध्ययन परिचय सैंतालीस गाथाओं वाले प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-जाति, कुल, रूप आदि के स्थान पर तप, त्याग, संयम और द्रव्य-यज्ञ के स्थान पर भाव-यज्ञ एवं श्रमण संस्कृति के महत्त्व की स्थापना। हरिकेशबल मुनि के श्रद्धेय चरित्र के माध्यम से यह स्थापना की गई है। इसलिये इस अध्ययन का नाम 'हरिकेशीय' रखा गया। __हरिकेशबल मुनि का सम्पूर्ण चरित्र वस्तुतः जैन दर्शन के विभिन्न सिद्धान्तों को साकार करने वाला चरित्र है। पूर्व-भव में जब वे सोमदत्त नामक ब्राह्मण थे तो जाति और रूप के मद ने उन्हें ग्रसा था। इससे उन्होंने नीच-गोत्र-कर्म का बन्धन किया, जिसका उदय होने पर उन्हें चाण्डाल कुल में कुरूप बालक के रूप में जन्म लेना पड़ा। यह जैन दर्शन के कर्म-सिद्धान्त का जीवन्त उदाहरण भी है और प्रमाण भी। उसी भव में उन्होंने शंख मुनि को अग्नि से तप्त मार्ग बताया। देखा कि मुनि के लब्धि प्रभाव से वह मार्ग भी शीतल हो गया। मुनि से अपने कर्म की क्षमा मांगी। संयम अंगीकार किया। तप-साधना से देव-गति पायी। यह संयम की शक्ति थी। इसी शक्ति के परिणामस्वरूप देव-आयुष्य पूर्ण कर वे हरिकेशबल के रूप में जन्म लेकर जाति-स्मरण ज्ञान से सम्पन्न होकर विरक्त हुए। प्रमाणित हुआ कि संयम साधना से जीव को देव गति व सुलभ-बोधि का अवसर प्राप्त होता है। जाति-स्मरण ज्ञान व अपने अनुभव से जागृत हो कर उन्होंने मुनि-दीक्षा ली। निरन्तर कठोर साधना की। इसके फल का एक आभास हरिकेशबल मुनि ने उसी भव में गण्डीतिन्दुक नामक यक्षराज द्वारा अपनी सेवा में रहने के रूप में पाया। वे यक्ष-पूजित मुनि हुए। प्रमाणित हुआ कि जिसकी आत्मा धर्म में स्थिर हो जाती है या जिस आत्मा में धर्म स्थिर हो जाता है, उसे देवता भी वन्दन किया करते हैं। यज्ञ-शाला में मासखमण तप के पारणे की भिक्षा जब उन्हें मिलती है तो गन्दोदक व दिव्य पुष्प-वृष्टि इसका एक और उदाहरण है। हरिकेशबल मुनि का चरित्र इस सत्य को भी साकार करता है कि जाति, कुल व रूप किसी आत्मा का सार-तत्व नहीं होते। वे तो कर्मों के परिणाम-मात्र होते हैं। उन से कर्मों का निर्धारण नहीं होता। वे जीवात्मा का भविष्य नहीं रचते। इसलिए जाति, कुल या रूप के आधार पर किसी की वास्तविक पहचान सम्भव नहीं। व्यक्ति की वास्तविक पहचान १६२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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