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अध्ययन परिचय
सैंतीस गाथाओं से निर्मित हुआ है प्रस्तुत अध्ययन। इस का केन्द्रीय विषय है-नश्वर जीवन के सम्यक् उपयोग हेतु सतत जागरूकता। पेड़ का सूखा पत्ता जीवन की नश्वरता का प्रतीक भी है और प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा का प्रथम शब्द भी। सूख जाने पर पत्ता हवा के हल्के झोंके से ही पेड़ से अलग हो जाता है। आयुष्य-कर्म भोग लेने पर जीव भी शरीर से अलग हो जाता है। जिसने शरीर धारण किया, वह उसे छोड़ेगा भी। जन्म के साथ ही मृत्यु निश्चित हो जाती है। मृत्यु जन्म का ही दूसरा पक्ष है।
पूर्णतः प्रमाद-ग्रस्त व्यक्ति के लिये यह एक तथ्य मात्र है। उपेक्षणीय है। थोड़े-से भी जागरूक व्यक्ति के लिये यह एक ऐसा सत्य है, जिस में पूरे जीवन को निर्धारित करने की शक्ति है। क्षण-प्रतिक्षण व्यतीत होते जीवन का सदुपयोग शीघ्रातिशीघ्र कर लेने की चेतावनी है। आत्मा की आगामी यात्रा को मंगलमय बनाने के लिये इस जीवन के एक-एक क्षण में सचेत रहने का बहुमूल्य सुझाव है। नश्वर संसार व शरीर से स्वयं को उन्मुख कर अक्षय आत्मा व धर्म के सम्मुख करने का दिशा-निर्देश है। आत्मा को निर्मल अवस्था तक पहुंचाने वाला वैराग्य का आधार है।
नश्वरता एक तथ्य मात्र नहीं है। नश्वरता एक विचार भी है। ज्ञान भी है। प्रेरणा भी है। नश्वरता को सम्यक् दृष्टि से देखने वाला साधक नश्वरता का भी अनश्वर प्रयोजन-सिद्धि के हित में उपयोग करता है। जीवन को वह जन्म-मृत्यु से मुक्ति का साधन बना देता है। यह तभी संभव है जब वह क्षण-मात्र के लिये भी प्रमाद-ग्रस्त न हो। कण-मात्र प्रमाद भी उसके जीवन में न हो। नश्वरता से मुक्ति का लक्ष्य सदैव उसके मानस-नेत्रों में रहे। उसे संचालित करता रहे।
भगवान् महावीर के प्रथम गणधर और ज्येष्ठ शिष्य थे-इन्द्रभूति गौतम। वे तपस्वी थे। तेजस्वी थे। अनेक लब्धियों से सम्पन्न थे। निश्छल थे। धर्म-संघ को समर्पित थे। प्रभु-वाणी के विलक्षण व्याख्याता थे। अनेक भव्य आत्माओं के उद्धारक थे। ज्ञान-दर्शन-चारित्र-विभूषित थे। जिन-शासन के आदर्श प्रभावक थे। उन्होंने अपने से कनिष्ठ साधु-पर्याय वाले अनेक मुमुक्षुओं को भी अपने से पहले केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त करते देखा था। उन्हें वन्दना की थी। इस वन्दना के प्रकाश में अपनी आत्मा की मुक्ति-यात्रा पर प्रश्न-चिन्ह लगाया था।
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उत्तराध्ययन सूत्र