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२३. (नमि राजर्षि की) इस अर्थ (भरी बात) को सुनकर (प्रेक्षावान्
होते हुए भी महल आदि न बनवा कर, दीक्षा लेने का क्या
औचित्य है- इस विषय में) हेतु व कारण (की जिज्ञासा) से प्रेरित देवेन्द्र ने तब ‘नमि' राजर्षि से यह कहाः
२४. "हे क्षत्रिय! (अपने वंश के भावी उज्ज्वल भविष्य के लिए सोचते
हुए, पहले आप) महल, वर्द्धमान गृह (जैसे विशिष्ट निर्माण), चन्द्रशालाएं या तालाब में निर्मित छोटे महल बनवाएं, उसके बाद (दीक्षा हेतु आप) प्रस्थान करें ।”
२५. इस अर्थ (भरी बात) को सुनकर, (प्रेक्षावान् होते हुए भी, महल
आदि न बनवाकर, अभिनिष्क्रमण करने में क्या औचित्य है- इस विषय में) हेतु और कारण (को बताने के उद्देश्य) से प्रेरित 'नमि' राजर्षि ने तब देवेन्द्र से यह कहाः
HETACATIODELETA
२६. ("हे ब्राह्मण!) जो (पुरुष) 'मार्ग' में घर बनाता है, वह निश्चय
रूप से संशय (की स्थिति का निर्माण) करता है। (इसलिए) अपने (शाश्वत) आश्रय (का निर्माण) वहां करना चाहिए, जहां जाने (पहुंचने) की इच्छा हो ।”
२७. इस अर्थ (से भरी बात) को सुनकर, (अधार्मिक व्यक्तियों का
निग्रह कर शान्ति स्थापना करते हुए अपने शासकोचित कर्तव्य को पूरा करना चाहिए, किन्तु उसे न कर, अभिनिष्क्रमण करना क्यों उचित है- इस विषय में) हेतु व कारण (की जिज्ञासा) से प्रेरित देवेन्द्र ने तब ‘नमि' राजर्षि को यह कहा :
१. नमि राजर्षि ने यहाँ स्पष्ट किया है कि यह संसार तो एक रास्ता है, लक्ष्य/मंजिल नहीं है,
इसलिए यहाँ पर सदा रहना तो है नहीं। अतः मकान आदि तो वहीं बनाना चाहिए जहाँ स्थायी रूप से रहना हो। विवेकी पुरुष के लिए तो शाश्वत स्थान मुक्ति या सिद्धालय है, जिसके लिए वे प्रवृत्त हुए हैं।
अध्ययन-६
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