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________________ अध्ययन परिचय तीस गाथाओं से बना है-प्रस्तुत अध्ययन। इस का केन्द्रीय विषय हैदुर्लभ मनुष्य-जीवन के सदुपयोग व दुरुपयोग में अन्तर समझ कर विषयासक्ति से बचते हुए विवेक व धर्म-सम्मत जीवन जीना। पांच दृष्टान्तों के माध्यम से इस विषय का प्रतिपादन हुआ है, जिन में से प्रथम दृष्टान्त एक उरभ्र या ऐलक (मेमने) का है। इसीलिये इस अध्ययन का नाम 'उरभ्रीय' रखा गया। ___ मनुष्य-जीवन को जीने की मुख्यतः दो दृष्टियां हैं। एक दृष्टि के अनुसार अधिकतम शारीरिक सुख की येन-केन-प्रकारेण प्राप्ति ही नश्वर मानव-जीवन का लक्ष्य व सर्वोत्तम उपयोग है। दूसरी दृष्टि के अनुसार आत्मा की सर्व-कर्ममुक्त या सिद्ध अवस्था की प्राप्ति के लिये दुर्लभ मनुष्य-जीवन का साधनरूप में उपयोग ही इसका लक्ष्य व सर्वोत्तम उपयोग है। एक ओर आसक्ति है तो दूसरी ओर अनासक्ति। एक ओर लोभ है तो दूसरी ओर त्याग। एक ओर सांसारिकता है तो दूसरी ओर आध्यात्म। एक ओर स्वार्थ है तो दूसरी ओर स्वार्थहीनता। एक ओर भाग-दौड़ है तो दूसरी ओर शान्ति। एक ओर राग-द्वेष है तो दूसरी ओर समभाव। एक ओर असीम इच्छाओं की अतृप्ति है तो दूसरी ओर इच्छाओं को जीतने से प्राप्त होने वाला अनन्त सन्तोष। एक ओर अज्ञान या मिथ्या ज्ञान है तो दूसरी ओर जन्म से पहले व मृत्यु के बाद की स्थितियां भी देख सकने में समर्थ ज्ञान या सम्यक् ज्ञान। एक ओर सारे जीवन को प्रभावित करने वाला मृत्यु का भय है तो दूसरी ओर मृत्यु-क्षण में भी खण्डित न होने वाला अभय। एक ओर दुर्गति तक पहुंचाने वाली जीवन-शैली है तो दूसरी ओर सुगति सुनिश्चित करने वाली जीवन-पद्धति। दूसरा पक्ष जैन धर्म का पक्ष भी है और प्रस्तुत अध्ययन का पक्ष भी। दीर्घ काल के पश्चात् कठिनाई से मिलने वाले मनुष्य-जीवन को विषयासक्ति व काम-भोगों की आग में स्वाहा करने वाले अज्ञानी हैं। वे उस मेमने की तरह हैं, जो खूब खा-पीकर हृष्ट-पुष्ट होता है और किसी मांस-भोजी का भोजन बनता है। उन्हें इन्द्रियों के सुख ही दिखाई देते हैं। उनका परिणाम दिखाई नहीं देता। वे उस व्यापारी की तरह हैं, जो एक काकिणी के लोभ में हज़ार कार्षापण गंवा बैठे। नश्वर सांसारिक सुखों के लिये वे जीवन भर पाप कमाते हुए हज़ार कार्षापणों जैसे उस बहुमूल्य मनुष्य जीवन को गंवा देते हैं, जो दिव्य, अखण्ड व अतुलनीय आनन्द तक पहुंचने का माध्यम भी हो सकता उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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