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________________ १२. (वह चिन्तन करता है कि) “शील (सदाचार से) रहित तथा क्रूर (हिंसादि) कर्म करने वाले अज्ञानी जीवों की जो (नरक रूप अप्रशस्त) गति है, और जहां अत्यन्त तीव्र वेदना (प्राप्त होती) है, उन नरकों के विषय में मैंने सुना है।" १३. "जैसा कि मैंने परम्परा से सुना है (कि) वहां 'औपपातिक' (अन्तर्मुहूर्त भर में ही जन्म प्राप्त कर महावेदना-ग्रस्त होने के) स्थान हैं, और (मृत्यु के बाद में अपने कर्मों के अनुरूप (वहां प्राणी) जाकर पश्चाताप करता रहता है। १४. जैसे कोई गाड़ीवान्, जानकार होकर (भी), समतल-सीधे-सपाट राजपथ को छोड़कर विषम (टेढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़) रास्ते पर उतर जाता है, और (फलतः) गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोकाकुल होता है। १५. इसी प्रकार, जो अज्ञानी धर्म का उल्लंघन कर अधर्म को अंगीकार करने के बाद, मृत्यु के मुख में पड़ता है (तब वह) धुरी टूटने की स्थिति वाले (गाड़ीवान्) की तरह शोक करता है। १६. फिर वह अज्ञानी मृत्यु के समय (परलोक-सम्बन्धी) भय से संत्रस्त होता है, और कलि' (हार के दाँव) से पराजित जुआरी (धूर्त) की तरह (शोकग्रस्त होता हुआ) अकाम-मरण से मृत्यु को प्राप्त करता है। १७. इस प्रकार (अब तक) अज्ञानी जीवों के अकाम-मरण का निरूपण किया गया है। अब यहां से ‘पण्डित' जनों के सकाम-मरण को मुझसे सुनो। अध्ययन-५ ७७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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