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ध्यानकल्पतरू. इस लिये मेरा किसीके साथ भी किंचित मात्र वैर विरोध नहीं हैं. इस जगत् वासी सब जीवोंके साथ अपने जीवने. माता-पिता-स्त्री-पुत्र-बन्ध-भग्नीयादि जितने सम्बंध हैं. वो सब एकेक जीवके साथ अनंत २ वक्त कर आया हैं. श्री भगवतीजी तथा जंबूद्विप प्रज्ञाप्तीमे, फरमाया हैं-की- “अगंत खुत्रो"अर्थात संसारमें इस जीवने, अनंत जन्म रमण कर, सर्व जगत् फरसा है. इस अनुसारसे, जगत् वासी सब जीव अपणे मित्र हैं; इसलिये जैसे इस भवके कुटुम्बपे प्रेम रहता हैं, वैसाही सब जीवोंके साथ रक्खे, सुक्ष्म (द्रष्टी न आवे सो) बादर (दिखेसो) त्रस (हले चले सो) स्थावर (स्थिर रहे सो) इन सब प्रकारके जीवोंकों अपणीआत्मा समान जाणे.* सबको सुखी चहावे सो मैत्रीभाव.
२ प्रमोद भाव इस जगतमें अनेक सत्पुरुष अनेक २ गुणके धरने वाले हैं. कित्नेक ज्ञानके सागर हैं. बहोत सूत्रोंके पाठी (पढे हुये) सद्वादशैली कर, जिनागम की रेष श्रोता गणो के हहयमें छ्यथा आत्मान प्रियप्राण, तथा तस्यापी देहीनां इति मत्वन कृतव्यं, घोर प्राणी बधौ बुद्धः अर्य--जैसे अपने प्राण अमनको प्रिय है वैसेही सवही के