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उपशाखा-शुभध्यान ६५ . है. ध्यान किया सो कर्मका क्षय करने किया,और कर्मका क्षयतो विना उपसर्ग, विना दुःख देखे नहीं होता है. जो परिसह उपसर्ग पडेहै, वो, कर्मका क्षय करनेही पडे है. ऐसे कर्ज चुकाती वक्त, पीछा नहींजहटना. ऐसा द्रढ निश्चयसें धैर्य धारणसेही ध्यान सिद्ध होता हैं. इन आठगुणोंके धारण हारही ध्यान सिद्धीको प्राप्त होते हैं, एसा जाण शुभध्यान करनेवाले मुमुक्षु जनोकों पहले अष्टगुण क्रमसे अभ्याससे प्राप्त करने चाहीये.
द्वितीय उपशाखा-"शुभध्यान विधी."
क्षेत्र द्रव्य काल भाव यह, शुभाशुभ यवसु जान; अशुभ तजी शुभ आचरी, ध्या ध्याता धर्म ध्यान.
१ क्षेत्र, २ द्रव्य, ३ काल, और ४ भाव, यह ४ शुभ अच्छे; और ४ अशुद्ध, खोटे. यों ८ भेद होते हैं. जिसमेंसे ४ अशुद्धको त्याग कर, शुद्धका जोग मिलाके. हैं! ध्यान ध्याताओं शुद्ध-धर्मध्यान ध्यावो.
कोदभी काम यथाविधी करनेसे इष्टितार्थ को