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________________ (बल) मरे? ऐसा आचय जनक बनाव बन ने का सबब भैंसे की पीठ पर लदेहुवे चूनेही का था !! तैसे ही जैन धर्म में रहे हुये जीव नित्य हीन दिशा को प्राप्त होते हैं, इसका सबब उनके हृदय में रहा हुवा विषय कषाय इर्षा रूप क्षार ही है !! सखेदाश्चर्य है की जैन धर्म जैसा सुधा सिन्धू में गोता खा कर ही, विषय कषाय इर्ष रूप लाय (आग) शांत नहुइ ! हा इति खेद ! विषय कषाय राग द्वेष इर्ष रूप लाय बुजणे का शांत करने का उपाय ध्यानही है, कि जिसका प्रभाव प्राचीन कालमें प्रत्यक्ष था उसे लुप्त जैसा हुवा देख, ध्यानका स्वरूप सरलता से समझा ने वाला एक ग्रन्थ अलगही होने की आवश्कता जान यह ध्यानकल्पतरू नामक ग्रन्थ श्री उववाइ जी सूत्र, श्री उत्तराज्येनजी" सूत्र,श्रीसुयडांग जी सूत्र श्री आचाराङ्गजी सूत्र और ज्ञानार्णव, द्रव्यसं ग्रह, ग्रन्थ तथा किनेक थोकडों के आधासे स्व-मत्या नुसार बनाके श्री जैन धर्मानुयायी यों को समर्पणकरता हूँ और चहाताहूँकि ध्यानकल्पतरू की शीतल छांय में रमण कर, अशुभ और अशुद्ध ध्यान से निवृत शुभ और शुद्ध ध्यान में प्रवृत न कर. सच्चे जैनी बन जैन धर्म का पुनरोद्धार करोगे! और इष्ठितार्थ सि द्ध करने समर्थ बनोगे-विज्ञेषु किंमधिकं. धर्मो नती कांक्षी-अमोल ऋषि.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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