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हार आदी देने, में तथा नमस्कार सन्मान करने सम्य क्त्व का नाश होता है! अनंत संसार की वृधी होती है!! -वगैरा उपदेश कर बाडे बान्ध लिये? देखिये बन्धूओं ! राग द्वेष जीतने बाले जिन देवके अनुयायियों का उपदेश ? ऐसी २ विपरीत परूपणासे इस शुद्ध जैन मतके अनेक मतांतर होगये हैं, और एकेक की कटनी-प्सत्यानाशी का उपाय का विचार ध्यानमें करने में ही परम धर्म समझने लगे, जो कुयु क्तियों कर विवाद में जीते उसेही सच्चा धर्मी जान ने लगे, जो जरा संस्कृतादि भाषा बोलने लगे और कहानीयों रागणीयों कर प्रषदा को हँसादे वोही पण्डित राज कहलाये, जो तरतम योग से साधू बने वोही चौ थे आरेकी बानगी बजे, जो ज्यूनी मुहपति पूजणी र क्खी या टीले टमके किये वोही श्रावकजी कहलाये, और विषय कषाय के पोषणेमे ही धर्म माना ! इत्यादी प्रत्यक्ष प्रवृतती हुइ इन क्षुलक बातों परसे हीविचारी ये कि जैनी इन को कहना क्या ? लाला रण जीत सिंहजीने कहाहै
जैन धर्म शुद्ध पाय के, वरते विषय कषाय।। यह अंचभाहो रहा, जलमें लागी लाय॥१ उज्जैन की सिप्रा नदीके पाणी में भैंसे(पाडे)जल