________________
ध्यानकल्पतरू.
इत्यादि हिंशानुबन्ध रौद्रध्यानका बहुत बयान हैं, सबका मतलब इनाही है की, किप्तीकों भी दुःख देनेका विचार होवे या दूसरे के बधसे वस्तु बनी उसकी अनुमोदना करे वोही हिंशानुबन्ध रौद्रध्यान.
द्वितीय पत्र-"मृषानुबन्ध.”
२ "मृषानुबन्ध रौद्रध्यानः"
असत्य चातुर्य बलेन लोकाद्वितं ग्रहीष्यामि SE बहु प्रकारं; तथा स्वमता पुराकराणि, कं
न्यादि रत्नानीच बन्धुराणी ॥ १॥ असत्य वागवंचनाया निजानंत प्रवर्त्तय त्यत्र जनं
वराकम्, सद्धर्म मार्ग दत्तिवर्तनेन मदोद्वतोयः सहि रौद्रधामा ॥२॥
ज्ञानार्णव. अर्थ-विचार करे कि में असत्यतासे चतुर्ता करके, मेरे कर्मोंको प्रगट न होने देते, अनेक प्रकारसें लोकोंकों ठग कर, मेरा मतलब पूरा करूं