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________________ २८ ध्यानकल्पतरू. हिंशानुवन्ध रौद्रध्यान. ___ और पृथव्यादि छेही काय के जीवोंकी हिंशा होवे, ऐसा यज्ञ, होम, पूजा, वगैरेका उपदेश दे, या ग्रन्थ रचे, तैसेही औषधीयों के शास्त्र रचते, दुष्ट (घातक) मंत्रका साधन करते, बिभत्स कथा कादम्बरी वगैरे रचते व पढते वक्त, हिंशक, चोर, जार, दुष्ट, दुर्व्यनीकी संगतमें रहते, और निर्दयी क्रोधी, अभीमानी, दगाबाज, लोभी, नास्तिक, इनके मनमें हिंशानुबन्ध रौद्रध्यानका विशेष वास होता है. तैसेही हिंशाले निपजती हुइ वस्तु, जैसे१गिरनी पीशा आटा, २चीनी सकर, ३हड्डी या हाथी दांत के चडे, वगैरे, ४कचकडेकी बनी वस्तु, ५पांखाकी टोपीयो वगैरे, ६चमडेके पूढे वगैरे, ... १ गिरनीके आटेकों बरोबर जमाके उपर सकर भुरभुग देखने मे हलते चलते बहूत जीव दिखते हैं. २चीनी सकरमें हड्डीयोंका बूग विशेष होता है, और गायके रक्तसे शुद्ध करते हैं. ३हाथी दातके लिये ७०००० हाथी फ्रान्म देश में दरसाल मारे जाते हैं. ४काछवेको गरम पानी में डुबाके मारके उसके चमडेकी जो वस्तु बनाते है उस कचकडेको कहते है. जीवने पक्षीयोंकी पांखो झडपसे उखाड लेते है, वो टोपी वगरेपे लगाते हैं. ६ जीवने पशूका चमडा निकाल ते हैं किनक स्थान चमड़ेके लियही विषादी प्रयोगसे पशूको मार उसके वहीयोंके पूठे, नोवत नगारे, वगैरे वनते हैं.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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