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________________ २६ ध्यानकल्पतरू अजब छटा है. . * मुशेसे रोगोत्पती होती है. यह मारने योग्य हैं. सर्प बिच्छ्रवादि विषारी जीवोंको अवश्य मारना, बडा पुन्य होगा, सिंहकी शिकार क्षत्रीयोकों अवस्य करना चाहीये. केसा सूर सुभट हैं, एक पलक में हजारोंका संहार करता है. इत्यादी विचारको हिंसानुबन्ध रौद्रध्यान कहना. औरभी अश्वमेध यज्ञ, घोडेको अग्निमें होमनेसे; गौमेधयज्ञ गौका, अजामेध बकरेका, और नरमेध मनुष्य का, अनिमें होम करने ( जलाने) से, बडा धर्म होता है, स्वर्ग मिलता है. यह विचारभी रौद्रध्यानका हैं. कित्येक पापशास्त्रके अभ्यासी किल्नेक जानवरोंके अंगोपांग मांस, रक्त, हड्डी, चर्म इत्यादी सेवनेसे रोग नास्ती मानते हैं. कित्नेक क्रिडा निमित्त कुत्तेआदी शिकारी जानवरोंसे बेचारे गरीब पशु पक्षीयोंको पकडाके मजा मानतें हैं. कित्नक बंदर रींछ आदी जीवोंके पास नृत्य गायनादीके * प्लेग रोगके प्रगट होने पहले घर में मूशे ( चुवे-उंदिर ) मरके घर के मालिक को चेताते हैं रोगसे बचाने उपकार करते हैं. उसे भूलके उसे मारते हैं यह बडी अज्ञान दशा है.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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