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प्रथमशाखा-आर्तध्यान.
विलापात, आत्मप्रहार' या मृत्युका चितवन करे, ग्रह (घर) संपतका किसीने हरण किया, अग्नी से जल (बल) गया, पाणीमें वहगया.-या डूब गया, पृथ्वी गत निधान (धन) विद्रुप होके निकला. राजा पंचने हरण किया. व्योपारदीमें टोटा पड़गया. या नामूनके लिये मदमें छकाहुवा, लग्नादी कार्यमें अधिक व्यय करनेते, अशक्तता दारिद्रतादी दुःख प्राप्त होनेसे, पश्चाताप करे; की हाय ! हाय!! अब में क्या करूं वगैरे. इत्यादि अंतःकरणका विचारभी दूसरा आर्त ध्यान हैं. और इन्द्रियोंकों पोषणे, अनेक बाजिंत्र- वारंगणा (नाटकणी) पुष्प वटिका' अतर,-अबीरादी, षडरस भोजन, वस्त्र, भुषण, सयनाशन, वगैरे, विनाश हुये पदार्थों का संयोग मिलाने, अनेक पापारंभ कार्यका चिंतवन करे, सोभी आर्त ध्यान..
तृतीय पत्र-“रोगोदय.” ३ “रोगोदय आर्त ध्यान सो”-(१)सब जीव सिर छातीयादी कूटना. *गडा हुवा धन्न कोयले पाणी वगैरे द्रष्टी आता हैं. नाचनेवाली. बगीचा.