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___३२० . ध्यानकल्पतरू.
५ 'बल ऋद्धि' के ३ भेद १ मन बलीये राग द्वेष सकल्प विकल्प परिणाम रहित मन रहे, २ बचन बलीये-अन्तर महुर्तमें द्वादशांगी का अभ्यास करे, बहुत काल पढते भी श्नम पैदा न होवे, ३ 'काया बकीये--मास वर्ष पर्यंत कायुत्सर्ग करे तो भी थके नहीं। ऐसे महाशक्तीवंत.
६. औषध ऋद्धि' के ८ भेद १ आमोसही-चरण रज पग(धूल) धूलके स्पर्य से, २ खेलोसही-श्ले षम थूक आदी स्पश्यं से, ३ जलोसही-सरीरके पसी ने के स्पर्श्य से, ४ मलोसही-कर्ण चक्षु नाशीकादी सरीरके मैलके स्पर्श्य से ५ विपासही-भिष्ट मूत्रके स्प र्य से और ६ सम्बोसही-सर्व स्पर्यसे (इन ६ का स्प र्य रोगीके होनेसे उसका)सर्व रोग नाश होवे, ७ अ सीबिष-विष अमृत रूप प्रगमें तथा वचन श्रवण मात्रसे सर्व विष विरला जाय. ८ 'द्रष्टी विष'--कृपा द्रष्टी मात्रसे विष अमृत मय हो जाय और कोप कर देखे तो अभत विषमय होजाय, महा विकारी निर्विकारी ब-. ने ऐसे महा शक्तीवंत.
७ 'रस ऋद्धि' के ६ भेद-१ अस्सी विषा'कोप वंत बचन मात्र से और २ द्रष्टि विषा'-- द्रष्टी मात्र से दुसरे के शाण नाश करशके.३ खीरासवी नि