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________________ उपशाखा-शुद्धध्यान. ३१७ माल देवे त्यों ज्ञान देवे, ९ ६ पदानुसारणी-एक पद के अनुसारसे सर्व ग्रन्थ समज जाय. १० सभिन्न श्रुत सुक्ष्म शब्दभी सुणले, तथा एक वक्त में अनेक शब्द सुणे, ११ दुरास्वाद-भिन्न २ स्वादको एकही वक्त में जाणले, तथा दूर रहा हुवा रसको स्वादले, १२१६ श्रवण, दर्शन, घाण, स्वाद, स्पर्य, इन ५ ही इन्द्री की तिब शक्ती होवे, १७ प्रत्येक बुद्ध-उपदेशविन अन्य संयोगसे वैराग्य आवे, १८ वादीत्व श. क्ती इन्द्रादी देवका भी चरचामें पराजय करे. २ 'क्रिया ऋद्धि' के ९ भेद-१ जलचर-पाणी पें चले पर डुबे नहीं, २ अग्नी चरण अग्नीपे चले पर जले नहीं, ३-६ पुफचरक-फुलपे, पतचरण-पत्तेपे, बीजचरण-बीजपे, और तंतू चरण मकडीके जालेके तंतूपे चले पर वो बिलकुल दबे नहीं, ७ श्रेणी चरण पक्षीके तरह उडे, ८ जंघा चरण जंघाके हाथ लगानेसे और ९ विद्याचर-विद्याके प्रभावसे क्षिण मालमे अ. पदानु सारणी के तीन भेद-प्रती सारी पहले पद मिला. वे, अनुसारी-छेले पद मिलावे, उभयासारी-विचके पद मिला ग्रन्थ पूर्ण करे . " १२ जोजन तकका शब्द सुणले. पंच इंन्दीके विषयको ९ जाजनके अंतरसेही पेछान ले.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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