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________________ SOSOOSSSSS प्रथमशाखा-आर्तध्यान. श्लोक 6 षोंने, आर्त ध्यानका प्रथम भेद कहा हैं. द्वितीय पत्र " इष्ट संयोग". २ "इष्ट संयोग नामें आर्त ध्यान" सो. राज्योप भोग शयना सन वाहनेषु, स्त्रीगंध माल्य वर रत्न विभूषणेषु; अत्याभिलाष मतिमात मुपैती मोहाद, घ्यानं तदार्तामीति तत्प्रवदन्नि तज्ञः सागर धर्ममृत इष्टकारी, प्रियकारी, राज्येश्वर्यता, चक्रवृत, बलदेव, मांडलिक राज, तथा सामान्य राजकी ऋद्वी. भोग भूमी ( जुगलीया) के अखंड सौभाग्य सुख, मंत्रीश्वर (प्रधान) श्रेष्ट शैन्यापतीयोंके विलास, नव यौवना ( मनुष्य देव संबंधी) स्त्रीयोके संग काम भोगकी, प्रयंका ( पलंगा ) दी शैय्या, अश्व, गज, रथादि वाहनों (सवारी ) की, चुवा, चंदन, पुष्प अतरादि सुभगध पदार्थोंके सेवनकी, रत्ना रजत (चांदी) सुवर्णादी अनेक प्रकारके भुषण (गृहणेंदागीने). व रेशमी, जरी जरतारके वस्त्रोंसे सरीरकों
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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