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________________ उपशाखा-शुद्धध्यान. ३०१ (द्रव्य क्षेत्र काल भव) की अपेक्षा से असति रूपह असे आत्मा में ज्ञानादी गुण का सदा आस्तीत्व होता हैं. इस लिये ® स्यात् आस्ति होय. २ और वो. ही पदार्थ अन्य (पर) द्रव्य चतुष्टय की अपेक्षा से मा स्ति रूप हैं. जैसे आत्मा जडता (अचेतन्यता) रहित हैं, इसलिये स्यात् नास्ति होय. ३ सर्व पदार्थ अपनी २ अपेक्षा से अस्ति रूप हैं. और परकी अपेक्षासे नास्ति रुप हैं. जैसे आत्मा में चैतन्यता की अस्ति और जडता की नास्ति;इस लिये एक ही समय में स्यात् आस्ति नास्ति दोनो होय. ४ पदार्थ का स्वरू प एकांतता से जैसा का बैसा कहा नहीं जाय, क्योंकि जो आस्ति कहेंतो नास्तिका और नास्ति कहै तो आस्ति का अभाव आवे. इसलिये एक ही समय में दोनो भाव प्रकाशे नहीं जाय; केवल ज्ञानी एक समयमें वरोक्त दोनों भावकों जाणतो शक्ते है. परन्तु वाणी द्वारा वागर नहीं शक्तेहैं. तो अन्य की क्या क हना; इसलिये स्यात् अवक्तव्यं, ५ एकही समयमें आ त्मा में सर्वस्व पर्यायों का सद्भाव आस्तित्व हैं और पर पर्यायों का सद्भाव नास्तित्व हैं. और दोनो भाव * स्याद् या स्यात् शद्वका अर्य होगा' अर्थात् हां! ऐसेभी होगा ऐसा होता हैं.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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