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२९८ ध्यानकल्पतरू. पिण्ड से आत्मा चैतन्य को अलग करने का ज्ञान यु. त तप संयम करो. कि जिससे कर्म रहीत शुद्ध, चैतन्य, ज्ञान श्वरूप बन जाय. क्यों की ज्ञानादी रत्नों का भाजन चैतन्यही है, ज्यों चांदी खटाइ से धोनेसे उज्वलता आतीहैं. तैसे चैन्तय उज्वलहो
___ ज्ञानथकी जाणे सकल, दर्शन श्रधा रूप. .... चारित थी आवत रूके, तपस्या क्षपन स्वरूप.... ज्ञान से चैतन्य की और कर्म की प्रणती पहचाने, द र्शन से उसेजिनोक्त आगम प्रमाणे सत्य श्रधे. चारि. त्रसे जीव और कर्मका अलग करनेके मार्ग लगे. और तप करके जीव और कर्म अलग करे यह उपाय. . जीव कर्म भिन्न २ करो, मनुष्य जन्मको पाय. . ज्ञानात्म वैराग्य से. धैर्य ध्यान जगाय.
मनुष्य जन्ममेंही होता है. इस लिये है मोक्षार्थीयों! यह इष्टार्थ सिद्धीका अवसर मनुष्य जन्मा दी सामग्री प्राप्त हुई है तो अब वैराग्य धैर्य युक्त धारण कर ज्ञान युक्त ध्यानस्त बन जीवको कर्मसे अ लग करे.!!
* जैसे स्फटिक रत्न स्वभावसेही निर्मल उज्वल होता है. परंतु उसके नीचे अन्य रक्तादी रंगका पदार्थ रखनेसे वो रंगमय दिखता है. तोही आत्मा कर्मोदय प्रमाणेही भासता हैं. परंतु है निर्मल, .