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________________ उपशाखा-शुद्धध्यान.. २९७ कर्ता है. 'भोत्ता' जीव शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे, रागा दी विकल्प रहित, उपाधी से शुन्य हैं. और आत्म स्वभाव से उत्पन्न हुवा सुख रूपीअमृत को भोगवने बाला है, तोभी अशुद्ध नयसे पूर्वोक्त सुख रुप भोजन के अभावसे शुभा शुभ कर्म से उत्पन्न हुये सुख औ र दुःखका भोगवने वाला है. संसारत्थ' जीव शुद्व नि श्चय नय से संसार रहित, नित्यान्द रुप एक स्वभावका धारक हैं, तोभी अशुद्ध नय से द्रव्य- क्षेत्रकाल- भाव- और भव इन पांच प्रकार के संसार में रहत्ताहैं. सिद्धो जीव व्यवहार नय से निज आत्म की प्राप्ती स्वरूप जो सिद्धत्व हैं, उसके प्रतिपक्षी.कमोदय से असिद्ध हैं तोभी निश्चय नय से अनंत ज्ञानादी गुण के स्वभावका धारक होने से सिद्ध हैं. विस्स सोड़ गइ' जीव व्यवहार से चार गतिमे भ्रमण करने वाले कर्मोदय से उंची नीची तिरछी दीशामें गमन करने वाला हैं. तोभी निश्चय से केवल ज्ञानादी अनंत गुणोंकी प्राप्ती रुप जो मोक्ष हैं. उसमेंजाती वक्त स्वभावसेही उर्ध गमनकर्ता हैं. शुद्ध चैतन्य उज्वल द्रव, रह्यो कर्म मल छाय. तप संयमसे धोवतां, ज्ञान ज्योती बढ जाय. ऐसा जाण मुमुक्षु प्राणीयों को देह पिण्ड कर्म
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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