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उपशाखा-शुद्धध्यान. २८९ यह पंच प्रमैष्टी के जाप स्मरण की संक्षेपमें रीत बताइ. और भी इस सिवाय, शास्त्र ग्रन्थमें स्म; रण करने के मन्त्र कहे हैं. उसमे के कुछ यहां दर्शाये जाते हैं. गाथा - मङ्गाल शरणो पदनि, कुरम्बं यस्तु संयमी
स्मरति. अविकल मेकाग्रधिया, सचा पवर्ग .. श्रियं श्रयति.
अर्थात-मङ्गल, शरण, और उत्तम इनका जो स्मरण करते हैं, वे मुनीराज मोक्षरूप महा लक्ष्मीका आश्रय लेते है सोॐ मन्त्र चात्तारि मङ्गलं, अरहन्ता मङ्गलं, सिद्ध मङ्गलं, साहु मङ्गलं केवाल पण्णतो धम्मो मङ्गलं, चत्तारी-लोगुत्तमा-अरहन्त लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलि पण्णतो धम्मो लोगुत्तमा, चत्तारि सरणं पब्वज्जामी, अरहन्त सरणं पव्वज्जामी, सिद्ध सरणं पवज्जामी साहू सरणं पवज्जामी केवलि पण्तो धम्म सरणं पव्बज्जामी. सूत्र-चउवी सत्थ एणं दसण विसोहिं जणयइ. उत्तरध्ययन.
__ अर्थ-चउवी सत्थ (चतुर्वास जिनस्तव) मंत्र. अर्थात्-चौवीस जिन (तिर्थकर) की स्तुती (गुणग्रा.
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