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________________ ध्यानकल्पतरू. ११ वोही हूं में, वोही में हूं, ऐसी एकांत भा वमा कर्ता हुवा यह आत्मा उसी पदको प्राप्त होता है, "अप्पासो परमप्पा" अर्थात आस्मा है सोही पर मात्मा है? ® उसी पदको प्राप्त होता है. और इससे ज्यादा सद्बोध कौनसा. १२ मैने मेरीही उपासना करनी सुरु करी, तो फिर मुजे अन्य उपासनाकी क्या जरूर, क्यो कि जैसे परमात्मा है, बैसाही में हूं. . १३ भेद विज्ञानी महात्माको दूक्कर तप, और महान उपसर्गसेभी किंचित मात्र क्षिन्न नहीं कर सक्ते हैं, चला नहीं सक्ते है. १४ अंतर आत्माका ध्यान रागादि शत्रुके क्षयसेही होता है. - १५ जो भ्रम रहित हो, जीव और देंहको अलग २ समजेगा, वोही कर्म बन्धन से छूट मोक्ष प्राप्त करेगा. रागादी शत्रु दूर हुये की आत्मा दिखी. १६ अज्ञान और विभमेक दूर होनेसेही आत्म तत्व भाष होता है. - १७ जिस कायाको प्राण प्यारी कर रक्खी थी, अज्ञान दूर होनेसे उसीही कायको तप संयमादी में *अन्य मती मी कहते हैं-आत्माचीनेसो परमात्मा'
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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