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________________ उपशाखा-शुद्धध्यान. इस विचार से निडर बने. ६ हा! हा! अश्चर्य की, जिन्ह कामोंसे, या कारणोंसे, अज्ञानीयों कर्म का बन्ध करते हैं. उन्ही कामोंसै ज्ञानी कर्म बन्ध तोड निर्मुक्त होते है. इस विचार से सबसे ममत्व घटावें......... ७ इत्ने दिन संसारमें जो मैं रूपोकी विचित्रता पाया, सों'भेद विज्ञान के अभावलेही. पाया, अब वैसा नहीं बनूं. .. .. . . ... ... ... ८ यह जग तारक वाहण (झाज-स्टिमर) सब के सन्मुख से चले जाते हुयेभी, अनंत जीवों डूब रहे हैं. इसका एक मुख्य कारण, "भेद विज्ञानकी अज्ञान ता ही हैं.” अब मै तो उससे छूटा होवू! . ९ क्या मजा है! यह आत्मा आत्माके द्वाग. ही पहचानी जाती हैं. इसे चशमें या दुर्बीन की कुछ जरूरही नहीं यो आत्मा देखे. १० विशेष आश्चर्य तो यह हैं की-जो विषय मय पदार्थ अज्ञानियो को प्रिती उत्पन्न करने वाले होते है. वोही ज्ञानीयोंको अप्रिय दुःख दायक लगते है; और संयम तपादिक, अज्ञानीयों को अप्रिती दुःख उ स्पन्न करने बाले भाष होते है. वोही ज्ञानीयों को सुखानंद दाता भाष होते है. . .
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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