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॥प्रस्तावना ॥
मोक्ष कर्म क्षया देव, स सम्यग्ज्ञानतः समृत्तः ॥ ध्यान साध्यं मतं तद्धि, तस्मात द्धित मात्मनः ॥ इस जगत् वासी सर्व जीव एकान्त सुखके अभिलाषी हैं; वो एकान्त सुख मोक्ष स्थानमें है; इसी सबसे सर्व धर्मावलम्बियों अपनी धर्म करणीका फलमोक्षकी प्राप्ती बतलाते हैं. और अलग २ मोक्षके ना मकी स्थापना कर, उसकी प्राप्ती के लिये क्षप करते हैं. जो सर्व दुःखसे रहित, एकान्त सुखस्थान मय माक्ष है, वो सर्व कर्मोंके क्षयसे होता है. कर्म क्षय करनेका उ पाय दर्शाने वाला सम्यक (समकित युक्त ) ज्ञान है; वो सम्यक ज्ञान ध्यानसे होता है, योग वशिष्ट प्रन्थमें कहा है कि "विचारं परमं ज्ञानं" विचार-ध्यान है सोही परमोत्कृष्ट ज्ञान है. इस लिये ध्यानही एकान्त सुख प्राप्त करनेका मुख्य हेतू है. परम सुखार्थी जनोको ध्यान स्वरूपको जाननें की विशेष आवश्यकता स मझ, यह " ध्यानकल्पतरू" ग्रन्थ रचा गया है. इसमें शुभाशुभ, और शुद्धाशुद्ध ध्यान का स्वरूप समझाअशुद्ध और अशुभसे बच. शुभ और शुद्ध ध्यान कर.