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________________ २६८ ध्यानकल्पतरू. की "मनएव मनुष्याणाम् कारणं बन्ध मोक्षयो" अर्थात कर्मसे बन्धने वाला और छोडने वाला मनही है. ®प्रसन्नचंद्र राज ऋषिकी तरह. इस लिये मनको जीतने की अवश्यकता है *राज ग्रही नगरीके श्रेणिक महाराजा. गुणसिल बागविराजते पाणक महान हुवे श्रीमहा वीरभगवन्त के दर्शन करने लियेजातेहुवे मार्गमें एक एक प्रसन चन्द्र नामे राम ऋषि को सूर्य के महातापमे अडोल ध्याना रुर देख, अर्थयचकित होश्रीमहावीरधामी को नमस्कार कर प्रश्न पुछा की महारान दुष्कर तपके करने वाले साधुजी आयुष्यपुर्ण कर कहो जायेंगे, भगवंत-अभी मरे तो पहली नर्कमें, श्रेणिक है. पहली नर्क. भगवंत-नहीं दुसरी नर्क में, श्रणि-है दुसरी! भ.. नहीं तिपरी यों श्रेणिक अश्चर्य में आ प्रश्न करता गया और भगवंत चौथी पांचवी छट्टी जाव सातमी नर्क तक फरमा दिया. श्रेनिक ने फिर अश्चर्य हो पूछा ऐसे महा मुनी सातमी नर्कमें जाय! तब भगवंतने फरमाया नहीं छटी. थों श्रेणिक अश्चर्य घर पूछता गया और भगवंत पांचपी, चौथी, तीसरी, दूसरी, पहली भवनपति, व्यंतर जोतषी, देवलोक श्रीवके, और अनुना विमान, का नाम फरमातेही देवधुंदीका शब्द सुनाया, तब श्रेणिकने पृछा महाराज! यह धुंदवी क्यों बजी? भगवंतने फरमाया की उन प्रश्न चन्द्र राजमापीको कैवल ज्ञान की प्राप्ती हुइ! यह मुण श्रेणिक गजा अति ही अब पति हो पूछने लगा महागजनी बढी ताजुबकी बात है की, अबी को तमा नर्क फरमातथे और अबी कैवल ज्ञान प्राप्त हो गया इni कारण क्या? भगवंत-तुमारे सार्थक एक मूभटने उन मुनीको देखके का की, यह साधू
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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