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________________ उपशाखा-“शुभयान” श्लोक गुप्तेन्द्रिय मनोध्याता, ध्येयं वस्तु यथास्थितम् * एकाग्रचिन्तनं ध्यानं, फल सम्वर निर्जरौ १ · अर्थ-शुद्ध ध्यानके करने वाले, पंच इन्द्रिय और मनको स्ववश अपने आधीन कर, शुद्ध वस्तुकी तर्फ एकाग्रता अभिन्नता लगाके अखंडित रह ध्यान ध्याते है. इसका फल सम्बर (आगामक पापका निलं. धन) और निर्जरा (पूर्वोपार्जित पापका क्षय) होता है; यो सर्व पापका क्षय-नाश होनेसें मोक्षके अनंत अक्षय अव्याबाध सुखकी प्राप्ती होती हैं; इस लिये मुमुक्षु ओंको शुद्धध्यान की विशेष अवश्यकता है. सोही कहता हूं. बरोक्त श्लोकमें शुद्धध्यान करनेके लिये इन्द्रि यों और मनको निग्रह करनेकी जरूर बताइ, सो इ. न्द्रियोंभी सनके स्वाधीन है, उत्तराध्ययन सूत्रमें कहा है-" एग जीय जीय पंच" अर्थात् एक मलको जीतने से पंच इन्द्रियों व हो जाती है. और भी कहा है,
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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