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तृतीयशाखा-धर्मध्यान २४३ रूप मेलको दूरकर चैतन्य निजात्म रूपको प्राप्त होता है.
ऐसेही दूध में घी मिला होता है, और उसे निकालने खटाइ, रवाइ, भाजन, मथक (मथन करने वाला) का संयोग होनेसे छाछ रूप मेलको छोड घृत अपने रूपको प्राप्त होता है, तैसेही अतर और पुष्प लोह और चमक, वगैरे अनेक द्रष्टांत कर जीवका औ र कर्मका अनादी सम्बन्ध समजना. और सुवर्या की तरह इन पदार्थोंको अनादी सम्बन्ध छडाके, निजरूप में प्राप्त करनेके, अनेक उपाय समजनें. तैसेही जीवकोभी अनादी कर्म सम्बन्धसे छडाके, निजरूपमें प्राप्त, करने के, वरोक्त ज्ञानादी चार साहित्योंका संयोग अक्षीर (पुक्त भक्कम) उपाय हैं.
बडा विद्वान और सदा शुची पवित्र रहने वाला वारुणी (मदिरा) के नशे में गर्क हो, अशुची से भरे उकरडेपे लोटनेमें गादीपे लोटने जैसा मजा मानने लगताहै. और गटरोंकी हवाको बगीचेकी सहल समजने लगता है, उसे अशुचीसे निवृतनेके बोधकको मूर्ख जाण गाली प्रदान करने लगता है. वोही जीव नशेसे निवृते बाद, अपनी कूदिशा देख, शरमाने लगता है,
और किसीके विना कहेही उकरडेको त्याग, (छोड) चला जाता है. ऐसेही जीव रूप पवित्र पुरुष, मोह