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________________ २३६ ध्याभकल्पतरू. .. सरीर, धन, कुटरब इत्यादी जिनको प्राणसे भी अधिक प्यारे समज रहा है, चिंतामणी तुल्य मनुष्य जन्म जिसके लिये गमा रहा है. वो भी तारण सरण 'न होवे तो, अन्यकी क्या कहना. मतलबकी विक्राल काल वेतालकी फांस में फसे हुये उस फास से बचा. ने कोइ समर्थ नहीं है, कालबली बडा जबर है, नरेंद्र चकृवृती यादी राजा, सुरेंद्र श-दादी देव. बड़े २ वलिष्ट दैत्य जैसे शस्त्रधारी क्षत्रीयों, वेद पाठी ब्राम्हणो श्रीमंत साहुकारों जमीदार जागीरदारों, सहश्र विद्या के साधक विद्याधरों ( खेचरों) सिंहादिक बनचरों, सादी उरचरों घर वस्त्र, भुषण, इत्यादी सर्व पदार्थों के पीछे काल बेताल लगा है, कालसे ज्यादा बलिष्ट इस संसारमें कोई भी नहीं हैं, कालसे बचाने जैसी कोइ घर, झंवारा, गुफा पहाडादी कोइ स्थान नहीं. की जहां छिप जाय, अमृत और अमर वेल, वगैरे ना मधारी बूंटी औषधीये, भी काल रोग मिटाने समर्थ नहीं, तो अन्यका क्या ? रोहणी प्रज्ञाप्ती यादी विद्या, घंटा करणादी संत्र, विजय प्रतापादी यंत्र, रस सिद्ध यादी तंत्र, में भी कालसे बचाने की शक्ती नहीं, सघनी यादी कोइशस्त्रभी नहीं, जिससे कालको डरावे बन्ध गणो! काल अजब शक्ती वाला है, पाणीमें गल
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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