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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २१७ परम उत्कृष्ट दुःख हैं. अब अंतराय टूटनेसे द्रव्यको बृधी हुइ तो उसके स्वरक्षण करनेका दुःख, रखे मेरा धन राजा, चोर, अग्नी, पाणी, पृथ्वी, कुटम्ब, देवतादिकसे नष्ट हो जाय, व्यय (खरच) होजाय और रोकड में एक पाइभी घट जाय तो सेठ जी को चेन नहीपडे तो फिर पूर्ण नष्ट हये तो उनके दुःखका कहनाही क्या? इत्यादी विचार से धन दुःख काही साधन दि. खता हैं. और कित्नेक स्त्री से सुख मानते है, पतिवृता स्त्री तो इस कालमें मिलनी मुशकिल हैं, और कूभारजा तो अनेक दिखती हैं. उत्तम जातीयों मे भी पतीका अपमान करती है पतिके सन्मुख अनाचार कर सीहें पतीको अपने हुकममे चलातीहें और इत्ले परभी पर घरमे भराके. पतीके नामको और कुलको बट्टा ल गातीहैं. येही स्त्री से सुख समजतेहो क्या ? ओरकिने क पुत्र से सुख समजतेहैं, पुत्र के लिये सम्यक्त्व रत्न में भी बट्टा लगा के. कूदेवोंके. और ढेड, चमारोके पांव पडते है धर्म भ्रष्ट होते हैं, पुत्र हुवातो भी इस कालमें सपूत निकलना मुशकिल है. परन्तु कूपूत बहुत दिखते है, वृध मात पिताकों, बचन और लठी के प्रहार करते है, घर, धन, अपनी मुक्त्यारी कर राजमें झगडा कर फजीत करते हैं. पुत्रका सुख भी