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२१० ध्यानकल्पतरू. पक्षपात राग द्वेष बडे, या आत्मश्लाघा, परनिंदा होवे ऐसा उपदेश नहीं करें. “पापकी निंदा करें परंतु पापी नहीं." - २ "विखवणी" अर्थात विक्षेपनी. संयम या श्रधासे चलित प्रणामी कॉ. पुनः सबौध कर आत्मा स्थिर करे, सो विक्षेपनी धर्म-कथा. इसके ४ भेद[१] अन्य मत्त के परिचय सें. तथा ग्रन्थावालोकन से. किसी की श्रधा भष्ट हुइ होय तो. उसे जैन मत का गहन सुक्ष्म ज्ञान बता के, अन्य मत की बातों से मिला के, प्रत्यक्ष फरक बतावे; कि जिसकी अक्कल तुर्त ठिकाणे आजावें. एसा बौध करें. [२] एकांत अन्यमतमें ही, किप्ती का मन लगा होय तो. उसे उसी के मत के शास्त्रों में जो साधू ओं की कठिण क्रिया, तथा जैन मत से मिलती बातों, होवे. सो बता के उनसे पूछे की ऐसे चलने वाले जैन है, या अन्य ? यो सत्यता द्रष्टीसे बता के जैन का द्रढ श्नधालू करें. [३] जब उनकी श्रधा जैन मत पे जमी देखें. तब उसके हृदय का मिथ्या कंद निकंद करने. न्याय प्रमाण के शास्त्रों में खुल्लम खुल्ला मिथ्यात्व व का स्वरुप बता शल्योधार कर निर्मळ करे. [४[जिन का निर्मळ ह्रदय होगया हो. उनके हृदय में पीछा मिथ्यात्व प्रवेश