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________________ - तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २०९ उसे अपनी कथा कहनी. इसके ४ भेद [१] प्रथम साधूका धर्म ५ महावृत, ५ सुमती, ३ गुप्ती, (यह १३ चारित्र) आदी कहे, जो साधू होने समर्थ न होवें. उनके लिये श्रावकके १२ वृतछ आदी कहे, के यथा शक्त धारन करनेकी सूचना करे. [२] निश्चय में, और व्यवहारमें, प्रवृतनेकी रीती सद्वाद शैलीसे कहे, की निश्चय में मोक्ष ज्ञानादी त्रय रत्नकी आराधनासें और व्यवहार में रजुहरण मुहपति आदी साधूके चि. न्ह व शुद्ध क्रियासे, निश्चय विना व्यवहार, और व्यवहार विन निश्चय की सिद्धी होनी मुशकिल है, व्यवहारमे शुद्ध प्रवृत्ती कर, निश्चय सिद्धीकी क्षप करनेसें सर्व सिद्धी होती है, [३] श्रोताओंको शंशयका उ. च्छेदन करनेको अपने मनसेही प्रश्न उठाके, आपही उसका समाधान करें की जिससे इष्टार्थ सिद्ध होवे, तथा प्रश्नका उत्तर मर्मिक शब्दमे दे समाधान करें [४] सत्य सरल सबकों रुचें ऐसा सहौध करे. परन्तु - * १ त्रस जोवकी हिंशा नहीं करें, स्थावरकी मर्याद करे. २ बड़ा झूट नहीं बोले. ३ बडी चोरी न करे. ४ परस्त्रीका त्याग करे. परिग्रह की मर्याद करे. ६ दिशाकी मर्याद करे, ७ उपभोग परिभोगकी मर्याद करे,. ८ अन दंड त्यारो, ९. सामायिक करे, १० दिशावकाशी करे, नेम चितारे, ११ पोषा करे, १२ मुनीराज को १४ प्रकारका सुज्ञता दान उलट भावले देवे.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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