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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान २०५ गये) हो. तथा किसीने प्रश्न पूछा, उसका उतर नहीं आया हो. तब पूर्वोक्त विधीसे गुरू महाराजके सन्मुख आके द्वितीयपत्र-"पुच्छणा” २ 'पूछणा'.अर्थात् पूछा करें. कीन्हें कृपाल आ. पने अनुग्रह कर. मुजे अमुक पढाया था. उसमें इस प्रकार संशय उत्पन्न होता हैं. सो है पुज्य, उसका निराकरणा- निवारण करने आपको तकलिफ देतां हु सो माफ किजीये. और मुजे मार्ग बताइ ये, इत्यादी नम्रता युक्त, अपने मन की शंका खुल्ली २ गुरुजी के सन्मुख प्रकाश करे, और गुरु महाराज उत्तर देवें, वो आंप एकाग्रता सें- उत्सुकता से. जी। तहत इत्यादी सकोमल-मीठे बचनो से बधाता हुवा ग्रहण करें. जहां तक अपने चितका पूरा समाधान न होवें, वहां तक तर्क उठा २ के पूछताही जाय, शरमाय नहीं; डरे नहीं, घबराय नहीं निश्चल चित से पूरा निराकरण-करछसं. देह रहित होवें, की कोइ भी उस बात कों पूछे ते आप उसके हृदय सचोट ठसा सके, ऐसा निश्चय करे ____ * चोयणा प्रति चायणो करनेसे ज्ञानी बहुत खुशी होते है. और . शांतपणे उसका खुलासा करते हैं.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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