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ध्यामकल्पतरू
के लगोलग किये होयँ उन्हे ) जानने सें. जन्मांतर में कृय कर्म के फल भागेवें हुये देख, वैराग्य उत्पन्न होता है. ऐसे २ अनेक कारणो से । जिनकों तत्वज्ञान प्राप्त करने की रुची होती हैं. उसको निसर्ग रुची कहना. तथा अन्य मतावलम्बी अज्ञान तप का कष्ट स. हने सें, अकाम निर्जरा होने से. ज्ञाना वर्णी कर्म का क्षय उपसम होनें से, विभंगज्ञान की प्राप्ती होवें. उस सें जैन मत के साधू की उत्कृष्ट शुद्ध क्रिया देख. अ. नुराग जगने सें, विभंगज्ञान फिट अवधी ज्ञान की प्राती होवें तब तत्व ज्ञान में रुची जगने से सम्यक्त्व की प्राप्ती हुइ, सो निसर्ग रुची. ऐसे किसी भी तरहतत्वज्ञता प्राप्त हों, उसमें प्रणाम स्थिरीभूत होवें वो. ही धर्म ध्यानी की निसर्ग रुची का लक्षण जाणना
तृतिय पत्र - " उपदेश रुची "
३ 'उपदेश रुची' श्री तिर्थंकर, केवल ज्ञानी, गणधर महाराज, साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका, सम्यक दृष्टी, इत्यादीजो शुद्ध शास्त्रानुसार उपदेश करें. उसपे धर्म ध्यानी की रुची जगे सो उपदेश रुची. दवै कालिक सूत्र के चौथे अध्येयनमें फर माया है.