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________________ १७४ ध्यानंकल्पतरू.. शीलवंत की महिमा करें. सीलवंत की सहायता करें. कुशीलीयों का संग छोडे. सो शीलवान होवें ॐ ९८ प्र-ऋद्धिबंत कायसे होवे? उ-सूपात्रमें दानसे ९९ प्र--मांगनेसे ही चस्सू क्यों नहीं मिले ? उधनवंत हो दान नदेवे आश्रितो को प्रसानेसे. - १०० प्र-भिक्यारी कौन होवे? उ-छिद्री और निंदक. १०१ स्त्रीयों क्यों मरें ? उ-बहुत स्त्रीयों का पति हो उन्हे मारेन से. १०२ प्र-भ्रमित चित क्या रहे ? उन्मदिरा भांग, अफीमादी केफी वस्तु सेवन करनेसे. . ... १०३ प्र-दहाज्वर कायसे होवे ? मनुष्य पशुपे ज्यादा बजन लादनेसे.. १०४ प्र-बाल विश्वा क्यों होवें ? उ-पतिकी घात कर बिभचार सेवनसे. पतिका आपमान करनेसे. १०५ प्र-मृत्यु बांझा क्यों होवे? उ-पशु पक्षी के बच्चे, अन्डे मारनेसे. या लीखों फोडनेसे. १०६ प्र-ज्यादा पुत्री क्यों होवे? पाणी पीतें पशु ओंको रोकके मारनेसे. बहु पुत्रीयेकी निंदा करनेसे. १०७ प्र-विध्वा पुत्री क्यों होवे ? उ-धर्म का धन खाय तो. धर्म के उप करण चोराय तो. * यह ९७ बोल मुद्रष्ट तरंगणी दिगाम्बर ग्रन्थों के है.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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