SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ ध्यानकल्पतरू. १९ प्र-कू भारज्या कायसे मिले ? स्त्री भरतार के आपमें क्लेश करावें, उनके झगडे देख हर्षावे. स्त्रीको भरमावे, विभचारणी बनावे, सतीयोंकी निंदा करे क लंक चडावे. अन्यकी अच्छी स्त्री देख दुःखी होवे, तो कूत्री मिले. २० प्र - सुभारजा कायसे मिले ? आप सीलवंत रहे विभचारणीके प्रसंग में वृत न भांगे, बिभचारणीको सुधारे सतीयोंकी परसंस्या और सहायता करे. स्त्री भरतार का विरोध मिटावे तो अच्छी स्त्रीका संयोग मिले. २१ प्र - अपमानी (मानहीन) काय से होय ? उ--अन्य का मान खंडन करे, माता पिता गुरू आदी वृधौका विनय न करे. गरीब, निर्बुद्धियोका निरादर करे, शत्र ओंका अपमान सुन खुश होय, अपने मुखसे अपनी परसंस्था करे. अपने गुणका अहंकार करे, गुणवंतो का द्वेष करे, गुणवंतोको वंदना न करे. दूसरेको मना करे, स्वछंदे चले, तो अपमानी होवें. " २२ प्र--सन्मान कायसे पावे? उ-तिर्थंकर, साधू साध्वी, श्रावक, श्राविका, सम्यकद्रष्टी ज्ञानी, गुणी, धर्मदीपक, इत्यादी महाजनो के गुणग्रामकरे, गुणदीपा वें. जेष्टोकाविनय भक्तीकरे, कीर्तीसुणहर्षावें, वंदनाकरे करावे. गुणीजनहो गुणोंको छिपावें, सदानम्ररहे, तो .
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy