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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १५३ ____२ श्रोत इन्द्रिकी प्रबलताकायसे होय? उ.-शास्त्र
और सूकथा श्रवण करे. यथातथ्य (जैसा का वैसा) अधान करे, बधीरोंकी दया करे. यथा शक्त सहाय करे, दीनोकी अर्जपे गौर कर मिष्ट बचनसे संतोषे, गुणीयोके गुण सुण हर्षावे, निंदा श्रवण नहीं करे तो श्रोतेंद्री (कान) निरोग्यता सुन्दरता तिब्रश्रुता पावे, तथा पाचेंद्री पणा पावें. . . .
३ प्र...चक्षु इन्द्रिकी हीनता कायसे होय? उ.-- स्त्री पुरुषके सुन्दर रूपको देख विषयानुराग धरे, कू रूपा देख दुर्गच्छा निंदा करे, अन्धोकी हँसी करे, चि डावे, मनुष्य पशूकी आँखोको इजा करे या फोडे. कूशास्त्र व पुस्तक पत्र आदी पढे, नाटकादि अवलोकन करे, नेत्रके विषयमें आशक्त होनेसे या करूर द्रष्टीसे देखनेसे नेत्रकी कुचेष्टा करनेसे अन्धा, काणा, चीवडा वगैरे नेत्रका रोगी होवे, तथा तेंद्री पना पावे. __४ प्र.-चक्षु इन्द्रिकी प्रबलता कायसे पावे.? उ-- साधू साध्वीयोंके दर्शनसे हर्षावे, धर्मानूराग धरे, वि. षय जनक रूप देख तुर्त द्रष्टी फेरले, नेत्रके रोगीयोंकी दया करे, सहायता करे, सत्सास्त्र व पुस्तक पत्रोंका पठ न करे, विषयसे नेत्रवशमे करे, तो निरोगी सतेज, मनहर, दीर्घ विषयी आँखो पावे.