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१५२ ध्यानकल्पतरू.. कर ) हां, जो अपाय विचय में विचारसे पैछाना था वोही, अंदर रहा हुवा कर्म रूप शबू हैं. वो दो प्रका रके विपाक उत्पन्न करता है. (१) अशुभ कर्म रूप कडुवा और (२) शुभ तर्क रूप मीठा. शुभ कर्मके फल भोगवते जीव मजा मानता है. जिससे अशुभ बंध होता है. और दुःख भोगवता है. यो अशुभका क्षय होते शुभकी वृधी होती है. ऐसा रात्री दिवसकी तरह यह सिलसिला अनादी काल से चलाही आता है. .. .' .. अब शुभाशुभ कर्मों उपराजन करनेकी रीती शास्त्रानुसार. विचारनेकी आवश्यकता है. की कौनसे कर्मोसे जीव सुख पाता है. और कौनसे से दुःख पाता है.
१ प्रश्न-श्रोत इंद्रीकी हीनता कायसे होय? उत्तर-विकथा श्रवण कर खुश होय, सत्य को असत्य और असत्यकों सत्य ठहराय, बधीर. (वैरे) की हांसी करे, चीडावे. अन्यको बधीर बनाने उपचार करे, दीन गरीबोंके करुणा मय शब्दो अजीजीपर ध्यान नहीं दिया, सब्दोध शास्त्र शृवण न करे. इत्यादी कर्मों करनेसे वधीर (वैरा) होवेः कानका रोगिष्ट होवे. तथा चौरि. द्री पना पावें.
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