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२४२ ध्यानकल्पतरू. मेरी शैन्याका पराक्रम देखीये, की त्रिलोक पूज्य मोह महाराजा की क्या दुर्दशा होती हैं. इत्ना कह चैतन्य रायने सारु सुभएके पाससे, सबौध भेरी बजवाके शैन्य सज कराइ. उसी वक्त शांत रसमें भरे हुये मन निग्रह अश्व, वैराग्य मदमें घुमते हुये मार्दव गज, सरलतासे शोभित आर्जव रथ. और सदा त्रप्त संतोष पायदल, च तुरंगगी शैन्य; क्षमा वक्तर, तप रूप अनेक शस्त्रसे सज हो, स्वव्याय रूप नगारे घुर्राते भजन रूप सणणाइयों सणगाते. वैराग्य पंथमें आगे बढते तीन, शुभ लश्या रूप लाल, पीले और श्चैत, निशाण फरीराते, गुणस्थान रोहण रणांगणमें आ खडे हुये.
दोनो मालिको का हुकम होतेही संग्राम सुरू हु वा, मोहकी तर्फसे 'मिथ्यात्व मंत्रीश्वर' पञ्चीस उमराव और अनंत सुभटोंके साथ, चैतन्य का सामना कर, कहने लगे, क्यारे चैतन्य! तुजे मेरे त्रीलोक व्यापी प्राक्रम का विस्मरण होगया दिखता है. तेरी अनंत वक्तवारी करी तोभी बेशरम, लडने तैयार हुवाहै. देख अची एक क्षिगो तुने तित्र बाणसे पतन कर पातालमें पहोंचाता हूं. कूदेव कुतुक,कुधर्म,कुशास्त्र,ये मरे सेवकोंके हाथ फजीती कराता हूं. ऐसा बसबकाट करता, वाण खेच खडा रहा.