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१४० . . ध्यानकल्पतरू. कता में कर, खूब ठाट जमाया हैं. और आपको प्राजय करनेकी तैयारी कर रहा है. इना सुणतेही, पोहो क्रोधातुर हो वोला, देखो मेरे प्यारे मित्र सामंतो! अनंत वक्त चैतन्य को मना किया की, तूं यह ढोंग मत कर. परंतु वेहया (निरलज्जा) इल्ली २नीती होतेभी नहीं शरमाता है. चलीये उसे जरा स मजा, कैद करें, अपने ताव करें. इला सुणतेही मो. हके पाखंड सेवकने कूबौध भेरी बजाके शैन्याको हुशार करी, सब सेवक चौक उठे, और अपनी २ सजाइ सजी मद मत बाले अभीमान हाथी, चंचल चपल मन अश, रंगीबेरंगी झणणाट करते कपट रथ, और अतिबलिष्ट लोभ पायदलों के समोह से प्रवरे, तमश वक्तर पेहन, कूक्रिया शस्त्र धार, तीन कूलेश्या रूप काले, पीले,हरे, निशाण फरराते कूअलाप बाजिंत्रों के झणकारसे गग न गर्जावते, कर्मोदय मोहूर्त में प्रयाण कर. कर्म रोहण मार्ग आ. मोह महाराजा स परिवार खडे हुये.
मोह की शैन्या देख अपयशाय सन्दीपाल. चैतन्य के पास आ के अर्ज करने लगे, की हैवानी! हम दोनो पक्ष का भला चहाते, है और चेताते है की "मोद नप बहुत प्राचीन वृध है. आप जैसे तरण महाराजाको, उनका अपमान करना योग्य नहीं है. आप