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________________ १३८ ध्यानकल्पतरू. 'मोहनप' ने अञ्चलही प्रहरा चौकी का युक्त बंदोबस्त किया हैं. डरीये नहीं. यह ली जी अति तिक्षण 'ज्ञान खड्ग' इस से सर्व कार्य फते होंगे. इतना सुण चैतन्य श्रधा नगरमें प्रवेश करने प्रवृत्त हुवा, की तुर्त निथ्यात्वके मिथ्यामोह, मिश्रमोह, सम्यक्त्व मोह और अनतान बंधका चौक यह सातही जुजार सुभट सन्मुख हो बोले. खबर दार चैतन्य राय, आगे बढने देनेका मोहो महाराज का हुकम नहीं हैं. चैतन्य ज्ञान खड़ले उनके सन्मुख होते ही सा तही मोहके भग गये. चैतन्य उत्साहा के साथ नगर में प्रवेश किया, छटा देख बहुत खुश हुवा. इत्नेमें अबूत के रखे १२ सुभट सन्मुख हो बोले, तुमे संयम मे हल में पेशने देने का हुकम नहीं है. चैतन्यने प्रत्याख्यन भाले से उनको भगा और संयम मेहलमें गये, सुमति सिंहासने जिनाज्ञा छत्र धारण कर लजा और धैर्य दा सीसे सम सम्बेग चमर ढुलाते हुये विराजे, उसी वक्त उनका सब परिवार सहर्ष विनय युक्त हाजिर हुवा, चैतन्य ने सबका यथा योग्य सत्कार किया, तत्व रुची और सुबुद्धी विरहणी पटरागणी योको अंकितमें स्था पन करी, पंच महावृत्तो को मंडलिक पद दिया. सम्य
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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