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__ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १३५ । मेरे शबू तो बडे जब्बर है. इनोने तो बडा ठाठ पाट जमा रक्खा है.
"मोहकी ऋद्धि” यह तीन अज्ञान त्रिकोटसे घेरी हुइ प्रक्रती का गरे और चार ग़ति दवज्जे युक्त 'अविद्या' नगरीके मध्यमें 'असंयम' मेहल की 'अधर्म' सभा में भ्रष्ट मति सिंहासणपे अति प्रचंड सरीरका धरणहार, मद मेंछका हुवा “मोहो” नामें महाराजा. अनाज्ञा शिरछत्र, और रति अरति दासीयोंके पास हर्ष शोक चमर दुलाते बेठे हैं; यह पाप पोशाकका भलका. अ. वृत मुकटादी भूषणोका चलका और क्रिया खड्ग मन मुखमली भ्यानमें झलकताहैं, जडता ढाल पीछे ढलकतीहैं. यह इसकी मायारूप पटरागणी, चार सज्ञा दासीयोंसे प्रवरी अधांगना बनीहै. यह काम देव कुँवर (पुत्र) ज्ञानावरणीयादी ७ मांडलिक महाराजा, मिथ्यात्व प्रधान, प्रमाद परोहित, राग द्वेष शंन्यापति, ऋरभाव कोटवाल, व्याक्षेप नगर श्रेष्ठ, कुव्यश्न भंडारी. कुसगदाणी. निंदक पटेल. कूकवीभाट प्रणामदूत. दंभ दुदत. पाखंड द्वारपाल इत्यादी महाजनो कर, सभा एक महाभयंकर रूपकों धारण कररही