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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान प्रकीर्ण ग्रन्थों करके विस्तिरत कियागया हैं: अनेक चमत्कारिक विद्याका सागर हैं. यह शब्दों करके अवर्णिय हैं. बडे २ विद्वान भी इसका पार नहीं पासक्ते हैं. भूत ज्ञानही सच्चा तीर्थ हैं, की जिसमें पापका ले. शभी नहीं है. और इसमें स्नान करनेसे, बडे २ पापा. स्मा पवित्र हो गये है. येही जगत् जंतुओंके उद्धार क रने सामर्थ्य है, योगीयोंका तीसरा नेत्र हैं. इत्यादी अनेक गुणों करके प्रतिपूर्ण भरा हुवा श्रुत ज्ञान हैं. इसको अभ्यास प्राप्त करनेमें धर्माध्यानीको बिलकूल ही प्रमाद नहीं करना चाहिये. गाथा 66 “ मार्गणा.” ८७ गइ इंदीए काए, जोए वेए कसाय नाणेय, संजम दंसण लेसा, भव सम्मे सान्न आहरे. तृतीय कर्म ग्रन्थ. अर्थ- गति, इन्द्री, काया, जोग, वेद, कषाय, ज्ञान, संजम, दर्शण, लेशा, भव्य. सम्यक्त्व, सन्नि असन्नि, अहारिक अनाहारिक. यह १४ मार्गणा. अब आगे जो जो कथन चलता है, वो सब पिछे कहे हुये श्रुत ज्ञान के पेट में समजना, माणका ज्ञान अतीही गहन हैं इसके विषाये जान
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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