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८६ ध्यानकल्पतरू. सर्व (प्रकाशे उले) श्रत ज्ञान करकेही श्रोता गणको समजा सके हैं, और केवलीके वचनसेही नर्क श्वर्ग जावत् मोक्ष तक की रचना छद्मस्त जाणते हैं, वो भी श्रत ज्ञान ही हैं. “सयंभू रमण ससुद्रसेभी अधिक गंभीर; लोकालोक सेभी बडा. सर्व पदार्थोंके अतिरिक्त कोट्यान सूर्यसेभी अधिक प्रकाश कर्ता श्रत ज्ञान हैं. श्रतज्ञानको छद्वादशांग, और चार अनुयोग करके तथा 'अंग, उपांग, छेद, मूल, और अनेक
* आमासंग, सुयगडायंग, ठाणा यंग, समवायंग, भगवती. ज्ञाता, उपशकदशांग, अंतगडदशांग, अणुत्तरोव वाइदशांग, प्रशन्न व्याकरण, विकसूत्र, और द्रष्टीवाद, यह द्वादशांग, + प्रथम चरणानुयोग, जिसमे अचारका कथा जैसे आचारंगादी शास्त्र. द्वितिय गणितानुयोग- गणित (संख्या) के शास्त्र जैसे चंद्रप्रज्ञाप्तीआदि शास्त्र, तृतिय धर्मकथानुयोग सो कथाके शास्त्र जैसे ज्ञाताजी आदि शास्त्र और चथुर्थ द्रव्यानुयोग जो स्ति धर्मआदि षटद्रव्यका विचार तैले सुयगडायंगजी आदी शाह, यह चार अनुयोग. + आचागंग आदी दुवादशोगके नाम कहे उसमें से अची इग कालमें दृष्टीवादांगका अभाव हैं इस लिये ११ हो
अंगागणे जाते हैं. ६ उपांग १२, उववाइ, रामप्रसैणी, जीवा ...भिमम पनवणः; जबूदिपप्रज्ञाप्ती. चंद्रप्रज्ञाप्ती सूर्यप्रज्ञाप्ती. निरि
या वालिका, कप्पिया. पुफिया, पुप्फचलिया, बन्हिदशां यह १२ उपांग || विवहार. वेदकल्प नशांत. दशश्रुतस्कंध, यह ४ छेद. Lonारिकमायत. नंदी. अनगोंगटार - ५ एल.