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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. ८३ ध्यान, ३ कर्म क्या हैं कैसे उत्पन्न होते हैं और क्या क्या फल देते हैं ? यह विचार करेसो विपाक विचय धर्म ध्यान. और जिस जगत में, इस जीयको परिभ्रमण करते अनंत काल वितिक्रत होगया, उस जगत का कैसा आकार है. यह विचार करेसो संठाण विचय पर्म ध्यान, इन चारहीका विस्तार से वर्णन आगे कहते है. प्रथम पत्र 'आज्ञा विचय' "आज्ञा विचय” धर्म ध्यानके ध्याता ऐसाध्येय (विचार) करेकी, इस विश्वमें रहे हुये, बहोतसें जीव आत्म कल्याण की इच्छा करते हैं, वो आत्म कल्या. ण एक श्री जिनेश्वर भगवानकी आज्ञामें, प्रवृत ने (चलने) से ही होता हैं. श्री जिनेश्वर भगवानकी आ ज्ञामेंही रहके साधू श्रावक जो करणी करतें है, वो करणी ही आत्म कल्याणकि करने वाली है. आज्ञासें ज्यादा, कमी, और विप्रित श्रधान करे, वोही मिथ्याव की गिनती हैं. इस लिये श्री जिनेश्वर भगवान की आज्ञा क्या है? उसका अव्वल विचार करनेकी, बहुत अवश्यकता (जरूर) है, श्रीजिनेश्वर भगवान, सर्व ज्ञाता ( केवल ज्ञान ) को प्राप्त हो. अधो(नीचा)
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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