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________________ चारों प्रकार के देवताओं ने आकर उनकी पूजा की और दीपक जलाये। उस समय उन दीपकों के प्रकाश में पावानगरी का आकाश प्रदीपित हो रहा था (द्र. हरिवंश पुराण 66/15-21)। __भगवान् महावीर के निर्वाण-प्राप्ति के उपलक्ष में दीपावलीनाम से पर्व के मनाये जाने का उल्लेख विक्रम की नवीं शती (विक्रम संवत् 84) के पौराणिक ग्रन्थ (जिनसेन-कृत) 'हरिवंश पुराण' (66/2) में उपलब्ध होता हैततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्धदीपालिकयाऽत्र भारते। समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्र-निर्वाणविभूतिभक्तिभाक्॥ -अर्थात् महावीर की कैवल्य-घटना पर देवों द्वारा की गई दीपावली की उस घटना के बाद से ही, भारतवर्ष के लोगों ने भगवान् की कैवल्य-लक्ष्मी के प्रति बहुमान देते हुए जिनेन्द्र-देव की . पूजा-उपासना की दृष्टि से दीपमालिका/दीपावली नामक पर्व मनाना प्रारम्भ किया। ____ मोक्ष को और कैवल्य को लक्ष्मी रूप में निरूपित करने वाले अनेकानेक उल्लेख जैन पुराणादि साहित्य में प्रचुरतया उपलब्ध होते हैं (द्र. स्वयंभूस्तोत्र- 16/3, आदिपुराण- 33/17, 34/222, 35/241, उत्तरपुराण-64/55, 55/6, आदि आदि)। भगवान् महावीर को मोक्ष-प्राप्ति के अनन्तर ही उनके प्रथम गणधर गौतम को केवल-ज्ञान प्राप्त हो गया था। वे भी कैवल्य रूप लक्ष्मी के अधिपति हो गए थे। गणधर को पुराणों में गणेश (हरिवंशपुराण- 3/65), गणाधीश व गणनायक (उत्तरपुराण- 76/387, 389, 94/374 आदि) नामों से भी निरूपित किया गया है। इसलिए गणेश-महालक्ष्मी के पूजन की परम्परा भी प्रवर्तित हुई। प्रथम खण्ड/69
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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