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होता है। पर्व में धार्मिकता और त्यौहार में सामाजिकता का प्राधान्य रहता है। जन-जीवन में आत्मविश्वास, उत्साह तथा क्रियान्वयता का संचार पर्व अथवा त्यौहार द्वारा किया जाता है।
पर्व अथवा त्यौहार धर्म और समाज के अन्तर्मानस की सामूहिक अभिव्यक्ति हैं। किसी जिज्ञासु ने अमुक धर्म अथवा समाज की आधारभूत पृष्ठभूमि जानना चाही तो गुरू ने उत्तर देते हुए कहा कि धर्म अथवा समाज के अन्तर्मानस को जानने के लिए उनसे सम्बन्धित पर्व अथवा त्यौहार को जान लेना परम आवश्यक है। __ वैदिक व जैन- दोनों परम्पराओं में अपने-अपने अनेक विशिष्ट पर्व व त्यौहार मनाये जाते हैं, उनमें कुछ पर्व व त्यौहार ऐसे भी हैं जिन्हें दोनों परम्पराएं मनाती हैं, यद्यपि उन्हें मनाने की पृष्ठभूमि दोनों की पृथक्-पृथक् व भिन्न रही है। ऐसे दो पर्व हैंदीपावली और रक्षाबन्धन ।
(1) दीपावली पर्व:
हिन्दू जनता इस पर्व को लक्ष्मी-पूजन दिवस के रूप में मनाती है ।दीपक प्रकाश का स्रोत होता है जो अन्धकार का विपरीत रूप है।अन्धकार प्रतीक है- अज्ञानता का एवं दरिद्रता का ।दरिद्रतानाशक लक्ष्मी तथा अज्ञान-नाशक गणेश-दोनों का मूर्तिमन्त रूप है-प्रकाशयुक्त दीपक । इस पर्व में दीपावलियां प्रज्वलित करने तथा गणेश-महालक्ष्मी के पूजन की प्रथा चिरकाल से चली आ रही है। इस पर्व के प्रचलन की पृष्ठभूमि की व्याख्या विविध प्रकार से की जाती रही है। कुछ लोग रावण को जीतकर भगवान् राम के अयोध्या लौटने की घटना से इस पर्व का प्रचलन स्वीकार करते हैं तो कुछ लोग सम्राट अशोक की दिग्विजय से इसे जोड़ते हैं।
कुछ विद्वान् इसे यक्षपूजा की प्राचीन परम्परा का परिष्कृत रूप मानते हैं। संभवतः इस पर्व का प्रचलन कोई ऐसी प्राचीनतम
प्रथम सण्ड/67