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(16) तमेव शरणं गच्छ ।
- उस ईश्वर की ही शरण लो ।
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(17)
मामेकं शरणं व्रज ।
- तूं एक मेरी ही शरण में आ जा।
परमात्मा समस्त लोक का नाथ व जगद्बन्धु है । सांसारिक दुःख से छूटने के लिए 'धर्म' एकमात्र उपाय है और धर्म के मूल उपदेष्टा के रूप में सर्वज्ञ परमात्मा की शरण जाना श्रेयस्कर होगा ही- इस वैचारिक प्रक्रिया में वैदिक व जैनदोनों परम्पराएं सहभागी हैं।
जैन धर्म वैदिक धर्म की साकृतिक एकता 482
(गीता -18/62)
( गीता - 18/66)
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