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(3) जहेह सीहोव मियंगहाय मच्चूणरंणेइ हुअंतकाले॥
(उत्तराध्ययन सूत्र- 13/22) - जिस प्रकार सिंह मृग को पकड़ कर ले जाता है, उसी प्रकार अन्तिम समय में मृत्यु मनुष्य को उठाकर ले जाती है।
(4) सुप्तव्याघ्रो मृगमिव, मृत्युरादाय गच्छति।
(महाभारत- 12/175/18) -सोये हुए मृग को सिंह की तरह मृत्यु प्राणी को ले जाती है।
संसार में बहुत से पापों का कारण यह होता है कि पापी व्यक्ति अपनी मृत्यु के बारे में सचेत नहीं होता। मृत्यु की अवश्यम्भाविता तथा अनियतकालता को हृदयंगम करते ही व्यक्ति का पाप-कर्म में उत्साह कम हो जाता है, क्योंकि वह तब सोच रहा होता है कि जिन शरीर, परिवार, धन-सम्पत्ति आदि के लिए वह पाप कर्म कर रहा है, उन्हें मृत्यु किसी भी समय छीन ही लेगी। इसी दृष्टि से, वैदिक व जैन- इन दोनों धर्म-परम्पराओं में मृत्यु की अवश्यम्भाविता को यत्र-तत्र रेखांकित किया गया है।
जनादिको साक