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________________ कोण-विजय राक्षम क्रोध महाविनाशक मनोविकार है। क्रोधाविष्ट व्यक्ति अपने आपे में नहीं रहता। वह उचित - अनुचित का भान भी खो बैठता है । फलस्वरूप, वह हिंसक पाप-कर्म में प्रवृत्त हो जाता है जिसका दुष्परिणाम दुःखदायी होता है। क्रोध को अपने अन्दर रखने का अर्थ है- एक शत्रु को अपने पास रखना। क्रोध को जीतने के लिए शान्ति व क्षमा भाव को धारण करना जरूरी है। क्षमा से मन में प्रसन्नता का संचार होता है और पाप-कर्म के बंधन का भय भी नहीं रहता। (1) उवसमेण हणे कोहं । - शान्ति से क्रोध को जीतो । (2) अक्रोधेन जयेत् क्रोधम् । ( दशवैकालिक सूत्र- 8/39) (महाभारत, 5/39/72) -अक्रोध से क्रोध पर विजय प्राप्त करनी चाहिए । जन 456
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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