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________________ _ (3) जे एगं जाणइसे सव्वं जाणइ। (आचारांग सूत्र-1/3/4/124) - जो एक आत्मा को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। (4) आत्मनि विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति। (बृहदारण्यकोपनिषद्-4/5/6) -आत्मा को जान लेने पर सब कुछ जान लिया जाता है। (अज्ञान) (5) अन्नाणं परियाणामि, नाणं उवसंपज्जामि। (आवश्यक सूत्र-प्रतिक्रमण पाठ) - मैं अज्ञान का परित्याग करता हूँ, ज्ञान को स्वीकार करता हूँ। (6) तमसो मा ज्योतिर्गमय। (बृहदारण्यकोपनिषद्-1/3/28) - मुझे अन्धकार से प्रकाश में ले चलो। 000 ज्ञान की जीवन में क्या महत्ता है, सदाचार के क्षेत्र में ज्ञान की क्या उपयोगिता है और सर्वश्रेष्ठ ज्ञान क्या है-इस संबंध में वैदिक व जैन-इन दोनों धर्मों की चिन्तनधारा प्रायः समान है। ही 18,455
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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